मन के शब्द
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लहू तो लहू है सब का लाल होता है ।
हिंदू – मुसलमां क्यूं बवाल होता है ॥
कौम के खातिर सरहदें भी पार कर लीं ।
फि वापस आने का क्यूं सवाल होता है ॥
यहां से वहां तक सारा जहां तुम्हारा है ।
घर छोड़ने मे क्यूं मलाल होता है ॥
गोली और बारूद से जहां को जीत तो लोगे ।
सब ही का सिकंदर के जैसा हाल होता है ॥
मुश्किल है निकाल पाना शिकारी के हाथ से ।
खंजर के साथ हाथ मे जो जाल होता है ॥
कोयल के कूकने से बहारें नहीं आतीं ।
“प्रखर” पतझर तो हर साल होता है ।।
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