मन के शब्द
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प्रियवर तुमसे हार गया हूं , नेह नदी के पार गया हूं ।
जब जब मैंने प्यार किया हैं , आशाओं से मार गया हूं ॥
देखा था मैंने इक सपना ,
मानूंगा तुमको मैं अपना ।
झंझावत में पड़ अपनों से , छुप कर तेरे द्वार गया हूं ।
प्रियवर तुमसे हार गया हूं , नेह नदी के पार गया हूं ।।
पागल मन को बहुत मनाया ,
फिर भी उसकी समझ न आया ।
मन मितवा से घड़ी मिलन की , बातों मे मैं टार गया हूं ।
प्रियवर तुमसे हार गया हूं , नेह नदी के पार गया हूं ।।
आखें तुम बिन बनीं बदरिया ,
ढ़ूढ़ रहीं वो अपना संवरिया ।
मीन पिआसी जल मे रह कर ,“प्रखर” विरह मे जार गया हूं ।
प्रियवर तुमसे हार गया हूं , नेह नदी के पार गया हूं ।।
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