मन के शब्द
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जमाने के बहुत से दर्द इस सीने मे जिंदा हैं ,
फिर भी न जाने क्यूं हमें बेदर्द कहते हो ।
सैकड़ों बार मैंने तुमसे इस पर गुफ्तगू की है ,
तुम ऐसे रहबर हो कि सुन चुपचाप रहते हो ।
तुम्हारे नाम से हम तो सरे बाजार रुसवा हैं,
हमारी नागवारी भी क्यूं तुम चुपचाप सहते हो ।
इरादों मे फकत फौलाद सा जो तुमको देखा था ,
रेत के महल सा तुम इम्तहां मे आज ढ़हते हो ।
इश्क भी इक इबादत है “प्रखर” कर के जरा देखो ,
जिसे अपना बनाया है उसी से दूर रहते हो ॥
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